पूर्वी उत्तर प्रदेश में बढ़ती ठंड के बीच गरमाने लगा है सियासी पारा

UP-Election

Political mercury has started heating up amidst rising cold in eastern Uttar Pradesh

गोरखपुर। आगामी विधान सभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में चुनावी रंग गहराने लगा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बढ़ती ठंड के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों की सक्रियता और चुनावी अभियानों की शुरूआत होने के साथ ही सियासी पारा बढऩे लगा है।

पिछले विधान सभा चुनाव से अलग इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बजाय पूर्वी उत्तर प्रदेश से चुनाव अभियान का श्रीगणेश हो चुका है। राजनीतिक हल्कों में हमेशा से यह बात छाई रही है कि प्रदेश की सत्ता का रास्ता पूर्वी उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है। यदि पिछले तीन चुनावों का आंकडा देखा जाय तो जिसने पूर्वी उत्तर प्रदेश में वर्चस्व की लड़ाई जीत ली वही लखनउ सत्ता पर काबिज हुआ इसलिए गोरखपुर, बस्ती, आजमगढ, वाराणसी, श्रावस्ती और प्रयागराज तक फैली हुई 165 विधान सभा सीटें सभी राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाती है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ गोरखपुर में कांग्रेस की महासचिव एवं उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका वाड्रा गांधी ने पिछले 31 अक्टूबर को बडी रैली करके यह साफ कर दिया कि कांग्रेस को चुनाव में कमजोर नहीं समझा जाय। इसके बाद पिछले नौ नवम्बर को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की विजय यात्रा में उमडे जन समूह ने भाजपा की चिन्ताएं बढा दी है। जब कांग्रेस जनशक्ति के भरोसे अपनी ताकत दिखा रही थी वहीं भाजपा ने कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए गोरखपुर, आजमगढ और बस्ती मंडल के 28 हजार कार्यकर्ताअें को पिछले 22 नवम्बर को गोरखपुर में जीत का मंत्र दिया। इस अवसर पर भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कहा था कि बूथ जीता तो चुनाव जीता।

यदि पुराने रिकार्ड पर नजर रखी जाय तो वर्ष 2007 में बसपा ने इन 165 विधान सभा सीटों में से 97 सीट हासिल की थी और प्रदेश में सत्तारूढ हो गयी थी जबकि सपा ने 2012 में इन्ही 165 सीटों में से 99 सीटों पर जीत हासिल कर सत्तारूढ हुयी थी जबकि भाजपा को वर्ष 2017 में 115 सीट मिली थी तथा सपा 17 और बसपा 14 पर ही सिमट गयी थी इसलिए पूरा जोर पूर्वी उत्तर प्रदेश पर लगाया गया है और लम्बित विकास परियोजनाओं का उदघाटन करके सत्ताधारी पार्टी अपने पक्ष में माहौल बनाया रही है। इसी क्रम में कुशीनगर में इन्टर नेशलन एयरपोर्टए गोरखपुर में एम्स और बन्द पडी खाद कारखाना का शिलान्यास आदि भी है।

भाजपा की बेचैनी इसी बात से समझी जा सकती है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित अनेक शीर्ष नेता आजमगढ़, कुशीनगर और गोरखपुर का दौरा किसी न किसी बहाने कर चुके हैं। जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश भी हो रही है। अभी हाल ही में पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उदघाटन स्वयं प्रधानमंत्री ने किया। इसके अलावा गोरखपुर से सिलीगुड़ी तक के एक नए एक्स्प्रेस वे का शिलान्यास भी इसी कड़ी की एक पहल है।

गौरतलब है कि योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उप चुनाव में भाजपा हार गयी थी। हालांकि बाद में पार्टी ने भोजपुरी अभिनेता से राजनीति में आए रवि किशन को जिताने में भाजपा कामयाब रही थी। इस बार किसान आंदोलनए मंहगाईए पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतें और उत्तर प्रदेश की कानून और व्यवस्था जैसे मुद्दे भाजपा के लिए निश्चित रूप से चुनौती खड़ी कर सकते हैं।